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माय पास धरे, धरी अंगुठे अमृत गया नंदीश्वरे॥१४॥
॥ ढाल |॥ ३ ॥ देशी हमचडीनी ॥ ॥करी महोच्छव सिद्धारथ भूप, नाम धरे वर्धमान ॥ दीन दीन वाधे प्रभु सुरतरु जिम, रुप कला असमान रे ॥ हमचडी॥१॥ एक दिन प्रभुजी रमवा कारण, पुर बाहिर जब जावे॥इंद्र मुखे प्रशंसा सुणी तिहां, मिथ्यात्वी सुर आवेरे ॥ हमचडी ॥ २॥ अहि रूपे विटाणो तरस्यु, प्रभु नांख्यो उछाली ॥ सात ताडनुं रूप कर्यु तब, मुठे नांख्यो वाली रे॥ हमचडी० ॥३॥ पाये लागीने ते सुर खामे, नाम धरे महावीर ॥ जेवो इंद्रे वखाण्यो स्वामी, तेवो साहस धीररे॥ हमचडी०॥४॥ मात पीता निशाळे मुके, आठ वरसना जाणी इंद्रतणा तिहां संशय टाट्या, नव व्याकरण वखाणीरे ॥ हमचडी० ॥ ५॥ अनुक्रमे यौवन पाम्या प्रभुजी, वर्या यशोदा राणी ॥ अठ्ठावीशे वरसे प्रभुनां, मात पिता निर्वाणीरे ॥ हमचमी० ॥ ६॥ दोय वरस भाइने आग्रह, प्रभु घरवासे वसीया॥ धर्म पंथ देखाडो इम कहे, लोकांतिक उलसीयारे ॥ हमचडी० ॥७॥
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