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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२९ आणी अंग हलाव्यं जिनपति, बोली त्रिशला मात हिये घणुं हिसती ॥ अहो मुज जाग्यां भाग्य गर्भ मुज सलसल्यो, सेव्यो श्री जिनधर्म के सुरतरु जिम फल्यो || ९ || सखी कहे शीखामण स्वामीनी सांभलो, हळवे हळवे बोलो हसो रंगे चलो ॥ इम आनंदे विचरतां डोहला पुरते, नव महिनाने साडासात दिवस थते ॥ १० ॥ चैत्र तणी सुद तेरस नक्षत्र उत्तरा, जोगे जन्म्या वीर के तव वीकसी धरा || त्रिभुवन यो उद्योत के रंग वधामणां, सोना रूपानी वृष्टि करे घेर सुर घणा ॥११॥ आवी छप्पन कुमारी के ओछव प्रभु तणे, चल्युंरे सिंहासन इंद्रके घंटारण झणे ॥ मळी सुरनी कोड के सुरवर आवीयो, पंच रूप करी प्रभुने सुरगिरि लावीओ ॥ १२ ॥ एक कोन साठ लाख कलश जलशुं भर्या, किम सेहस्ये लघु वीर के इंद्र संशय धर्या ॥ प्रभु अंगूठे मेरु चांप्यो अति घड घडे, गडगडे पृथ्वी लोक जगतना लडथडे ॥ १३ ॥ अनंत बळी प्रभु जाणी इंद्रे खामीओ, च्यार वृषभनां रूप करी जल नामीओ ॥ पूजी खरची प्रभुने For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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