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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२८ देवानंदा कुखेथी प्रभुने संहरो ॥ नयर क्षत्रीयकुंड राय सिद्धारथ गेहिनी, त्रिशला नामे धरो प्रभु कुखे तेहनी ॥३॥ त्रीशला गर्भ लईने धरो माहणी उरे, ब्यासी रात वसीने कडं तीम सुरकरे ॥ माहणी देखे सुपन जाणे त्रीशला हयाँ, त्रीशला सुपन लहे तव चौद अलंकां ॥ ४॥ हाथी वृषभ सिंह लक्ष्मी माला सुंदरुं, शशी रवि ध्वज कुंन पद्म सरोवर सागरं ॥ देव विमान रयण पुंज अग्नि विमले, एहवे देखे त्रिशला एह के पीउने विनवे ॥५॥ हरख्यो राय सुपन पाठक तेडाविया, राजभोग सुतफल सुणी तेह वधाविया ॥ त्रिशलाराणी विधिस्यु गर्नसुखे हवे, माय तणे हित हेत के प्रभु निश्चल रहे ॥ ६ ॥ माय धरे दुःख जोर विलाप घणुंकरे, कहे में कीधां पाप अघोर भवांतरे ॥गर्भ हयों मुज केण हवे केम पामीए, दुखनो कारण जाणी विचार्यु स्वामीये ॥ ७ ॥ अहो अहो मोह विटंवण जालम जगतमे, अणदीठे दुःख एवडो उपायो पलकमें ॥ ताम अभिग्रह धारे प्रभु ते कहुं, मात पिता जीवतां संयम नवि ग्रहं ॥ ८॥ करुणा For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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