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वाने पाछा वलो ॥ ना ना कहेता नावे लाज, किम रहेशे क्षत्रीकुल राज ॥ १९ ॥ इस्यां वचन कहे हरीनी नारी, पासे उभा देवमुरारि ॥ नेम न बोल्या मुखथी फरी, मान्युं मान्युं कहे सुंदरी ॥२०॥
॥ ढाल ॥३॥ उग्रसेन घर बेटडी, मन भमरारे ॥ नामे राजुल नार, लाल मन भमरारे ॥ कृष्ण देव तिहां आविया ।। मन० ॥ राय तणे दरबार ।। लाल मन० ॥१॥ उग्रसेन घणुं हरखीया ।। मन०॥ धन्य धन्य दिन मुज आज ।। लाल०॥ हरी आव्या मुज
आंगणे ॥मना तो सरीआं सवि मुज काज लाल. ॥२॥ कृष्ण कहे सुणो राजीया ॥ मन० ॥ मुज बंधव तुज धुअ ॥ लाल ॥ प्रेम धरी परणावीये ॥ मन०॥ जिम वाधे बहु नेह ॥ लाल० ॥३॥ हरी विवाह मेलीओ ॥ मन० ॥ नेम तणो निरधार ॥ लाल० ॥ मंडप घाल्या बारणे ॥ मन भमरारे ॥ तोरण बांध्यां सार ॥ लाल० ॥४॥ खाजां लाडु लापशी ॥मन०॥ अति प्रौढां पकवान ॥ लाल०॥ जमो जलेबी पातळी ॥ मन० ॥ जीम वाधे निजवान ॥ लाल० ॥५॥
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