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तप आराधवा, करे शुभ भाव विचार ॥ ३ ॥ अष्ट वरष अष्ट मासनी ए, तपविधि विधिमा सार ॥ श्रावक तनमन वचनथी, पाले निरतिचार ॥ ४ ॥ पोसह पडिकमणु करीए, पुजे जिन अंग अविकार ॥ करुणा सागर गुण भर्या, मुनिजन वंदे विचार ॥५॥ आगम वयण सुणि करीए, पुछे प्रश्न विचार || गुरुगम लहिने सहे, समकित वड विस्तार ॥ ६ ॥ परम सरुप परमेसरुए, परमातम जगदिश ॥ चंद्र प्रभ जिन अष्टमां, वंदो धरि सुजगीस ॥ ७ ॥ सारण वारण चोयणाए, प्रति चोयणनां जाण ॥ वस्त्र पात्र तेहने दिये, तो लहें सुख निरवाण ॥ ८ ॥ एहवी वाणी स्वमुखे, फरमावी जिनराज ॥ भव्य जीव श्रवणे सुणी, धारी आतम काज ॥ ९ ॥ मान क्रोध मद परिहरीए, धारो शुद्ध स्वभाव ॥ आतम ज्ञान नये गृही, आनंद घनरस पाव ॥ १० ॥ शांति सुधारस गुणभर्याए, अनुभव भाव जिणंद || अचरण तेज अमृतसमो, रत्नमुनि गुणवृंद ॥ ११ ॥ उज्जल अष्टमिदिन भण्युए, समकीतीने सुखदाइ ॥ चंद्रमुनि
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