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धणीए, वर्द्धमान जगदीश ॥ पांचे जिनवर प्रणमता, जगमा वाधे जगीश ॥ ३ ॥ जन्म कल्याणक पंचरूप, सोहमपति आवे ॥ पंच वरण कलसे करी, सुरगिरि न्हवरावें ॥४॥ पंच शिष्य अंगुठडे, अमृत संचारे ॥ बालपणे जिनराज काज, इम भगति सुधारें ॥५॥ पंच धाय पालिजतां. योवन वय पावें ॥ पंच विषे विष वेल नोडी, संजम मन भावे ।। ६ ॥छंडी पंच प्रमादने, पंच इंद्री मद मोडी ॥ पंच महाबत आदरे, देइ धन कोडी ॥७॥ पंचाचार आराममां, पाम्युं पंचम नाण॥ पंच देह वर्जित थयो, पंच इस्वाक्षर मान ॥८॥ पंचम गति भरतार तार, पुरण परमानंद ॥ पंचमी तप आराधतां, श्री खिमाविजय जिणचंद ॥९॥इति।।
॥ श्री अष्टमी- चैत्यवंदन ॥ ॥ अष्टमी. दिन धन जिनवरु ए, चंद्रप्रन मनोहार॥ सेवा करतां जेहनी, टाले भव दुख द्वार ॥ ॥१॥ भगवन् भाखित जे वचन, धारे गुण भंडार ॥ तेहिज अष्टमि तप भण्यु, आगम अर्थ उदार ॥२॥ ज्ञायक ज्ञेय स्वरुपथी ए, चरणधरे सुखकार ॥ अष्टमि
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