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गुण योग्यता, लहि आगम गुण छांहि ॥ १२ ॥ ॥ इति संपूर्ण ॥
॥ श्री पर्यपणपर्वनं चैत्यवंदन ॥ ॥ श्री श्री पजोसणपर्व सेवो, भवीजन सह हरखी ॥ वेण रासी सर्व परवणी, निज आतम परखी ॥१॥ गुण अनंत छे जेहना, धर्मध्यान नित कीजे ॥ प्रभु गुण सर्व संभालीने, निज भाव ओलखीजे ॥२॥ कल्पतरु सम कल्पसुत्र, निजमंदिर पधरावो ॥ गीत गान मन भावसुं, सुभ भावनाभावो ॥३॥ करी वरघोडो अभीनवो, जीनशासन दीपावो ॥ शुभकरणी अनुमोदतां, गुरु समीपे लावो ॥४॥ गुरु प्ररुपे वायणा, भाव भक्तिने काजे, छट्ठ तप करी निर्मलो, आतमशक्ति माटे ॥५॥प्रतिपदाए प्रभु वीरनो, जन्म महोछव किजे ॥ भगती वच्छल भगवंतनी, सुकृत भव कीजे ॥ ६ ॥ अठम तप करी निरमलो, सकल सुणो अधिकार ॥ नागकेतुनीपरे निरंमलो, जेम पामो भवपार ॥७॥ बली सुणवा बारसे सुत्रनां, भवी थइ उजमाल ॥ श्रीफल स्वामी प्रभावना, करी टालो
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