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मुनि पासे लई वैराग, विचर्या साते रही संजमेरे ॥ ॥ रो० ॥ ४॥ सौंधर्मे हुआ सुरसात, ते सुत साते रोहिणीतणा रे ॥ वैताढ्ये भल्ल चूल खेट, समकित शुद्ध सोहामणोरे ॥ गुरुदेवनी भक्ति पसाय, धुर स्वर्गे थई देवतारे ॥ लघु सुत आठमो लोकपाल, रोहिणीनो ते सुर सेवतारे ॥रो० ॥ ५॥ वली खेट सुता छे चार, रमवाने वनमा गईरे ॥ तीहां दीठा एक अणगार, भाखे धर्म वेला थरे ॥ पूछयाथी कहे मुनि भास, आठ पहोर तुम आयुछेरे । आज पंचमीनो उपवास, करशो तो फलदाय छेरे ॥ रो० ॥ ६॥ धुजंती करी पचखाण, गेह अगाले जई सोवतिरे । पडी विजळीये वली तेह, धुर सुर लोके देवी थतीरे॥ चवी थई तुम पुत्री चार, एक दिन पंचमी तप करीरे ।इम सांगली सहं परिवार, वात पूर्व भवनी सांभळीरे ॥रो०॥७॥ गुरु वंदी गया निज गेह, रोहिणी तप करता सहुरे ।। मोटी शक्ति बहुमान, उजमणां वस्तु बहुरे ॥ इम धर्म करि परिवार, साथे मोक्षपुरी वरीरे ॥ शुभ वीरना शासन मांह, सुख फल पामो तप आदरीरे ॥रोगाला
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