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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ढाल || ४ ॥ मारी अंवाना वडला हेठ ॥ ए देशी ॥ निसुणी दुर्गंध कुमार, जाति स्मरण पामतोरे॥ पद्मप्रभु चरणे शीस, नामी उपाय ते पूछतोरे ॥ प्रभु वयणे उजमणे युक्त, रोहिणीनो तप सेवियोरे ॥ दुर्गध पणुं गयुं दूर, नामे सुगंधी कुमार थयो रे रोहिणी तप महिमा सार, सांगळतां नव विसरेरे ॥ ॥ ए आंकणी ॥ १॥ रही वात अधुरी एह, सांभळशो रोहिणीने भवरे ॥ इम सुणी दुर्गधा नारी, रोहीणी तप करे ओछवेरे ॥ सुगंधि लहि सुख भोग, स्वर्गे देवी सोहामणीरे ॥ तुज कांता मघवा धुअ, चवि चंपाए थई रोहिणीरे ॥ रो० ॥२॥ तप पुण्य तणे प्रभाव, जन्मथी दुःख न देखीओरे ॥ अति स्नेह कीस्यो अम साथ, राय अशोके वली पुरीयुरे ॥ गुरु बोले सुगंधि राय, देव थई पुष्कलावतीरे ॥ विजये थई चक्रि तेह, संजमधर हुआ अच्चुतपतिरे ॥रो॥३॥ चविने थया तमे अशोक, एक तपे प्रेम बन्यो घणोरे॥ सात पुत्रनी सुणज्यो वात, मथुरामा एक महिणारे ॥ अग्नि शर्मा सुत सात, पाटलिपुर जई भीक्षा भमेरे ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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