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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९६ चितरायरे ॥ अशो० ॥ ४ ॥साहमिवच्छलपधरावीनेरे, गुरु वस्त्र सिद्धांत लखाय ॥ कुमारसुंगध तणी परेरे, दुष्कर्म सकल क्षय जाय रे ॥ दुष० ॥ ५॥ साधु कहे सिंहपुरमारे, सिंहसेन नरेसर सार ॥ कनकप्रभा राणी तणोरे, उंगेधी अनिष्ट कुमाररे॥दुर्ग०॥६॥ पद्मप्रभुने पुछतारे, जिन जल्पे पूर्व भव तास ॥ बार जोजन नागपुरथीरे, एक शिला निलगिरि पासरे ॥ एक०॥ ७॥ ते उपर मुनि ध्यानथीरे, न लहे आहेडी शिकार ॥ गोचरी गत शिला तळेरे, कोप्यो घरे अग्रि अपा ररे ॥ कोप्यो० ॥ ८॥ शिला तपी रह्या उपरेरे, मुनि आहार करे काउसग्ग ।। दपक श्रेणी थई केवलीरे, ततक्षण पाम्या अपवर्गरे ॥ तत० ॥९॥ आहेडी कुष्टी थई रे, गयो सातमी नरक मझार ॥मच्छ मघा अहीं पांचमी, सिंह चोथी चित्र अवतार ॥ सिंह ॥ ॥१०॥ त्रीजी बिलाडो बीजीएरे, धूक प्रथम नरक दुःख जाल ॥ दुखना भव भमी ते थयोरे, एक शेठ घरे पशुपाल रे ॥ एक० ॥ ११ ॥ धर्म लही दवमा बल्योरे, निद्राए हृदय नवकार ॥ श्री शुभवीरना ध्यानथीरे, तुज पुत्र पणे अवताररे ॥ तुज ॥ १२ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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