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॥ कलश ॥ इम त्रिजग नायक मुक्तिदायक वीर जिनवर जाखीयो॥ तप रोहिणीनो फल विधाने विधि विशेषे दाखीयो ॥ श्री क्षमाविजय जसविजय पाटे, शुभविजय सुमति धरो ॥ तस चरण सेवक कहे पंमित वीर विजयो जय करो॥इति श्री रोहिणी तप विधि स्तवन संपूर्ण ॥
॥ अथ श्री अक्षयनिधि तपर्नु स्तवन. ।। ।।दुहा॥ श्री शंखेश्वर शिरनमी, कहुं तप फल सुविचार ॥अक्षय निधि तप भाखीयो, प्रवचन सार उद्धार ॥१॥ तप तपतां अरिहा प्रभु, केवल नाणने हेतानाण लही तप तजी कीयो, शिव रमणी संकेत ॥२॥ तिम सुंदरी परे तप करी, अक्षयनिधि गुणवान, श्रुत केवलीये जे रच्यो, कल्पसूत्र बहु मान ॥३॥ ढाल॥१॥ रुडीने रढोयालीरे वाला तारी वांसळीरे ॥ ए देशी ।।
॥ जंबु जरते रे नयरी राजग्रहीरे, संवर शेठ वसे एक सार । गुणवंती नारीरे कठण आजीविकारे, घर दारिद्रय तणो नंडार ॥सुंदरी सेवोरे अक्षय निधि तप भलोरे ॥ १॥ ए आंकणी ॥ पुण्य संजोगेरे पिया
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