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आंसु, तिमिर पमल गयां दुर ॥ ८॥ प्रभुनी ऋद्धि देखी, एम चिंते मनमाहे ॥ धिक् धिक् कुडी माया, कोना सुत कोना तात ॥ एम भावना भावतां, पाम्यां केवलज्ञान ॥ ततक्षण मरुदेवा, तिहां लह्यो निर्वाण ॥ ॥ ९॥ धन्य धन्य ए प्रभुजी, धन्य एहनो परिवार । लाख पूर्व चोरासी, पाली आयु उदार ॥ महा वदी तेरस दीन, पाम्या सिद्धिनुं राज ॥ अष्टापद शिखरे, जय जय श्री जिनराज ॥ १० ॥
कलश ॥ चोवीस जिनवर तणो अंतर, भएयो अतिउल्लास ए, संवत सतर तहांतरे, एम रही चोमासुंए । संवतणो आग्रह ग्रही में श्री विमलविजय उबझागए ।। तस शिष्य रामविजय नामे, वो जय जय कार ए ॥ इति श्रीआतरानुं स्तवन संपूर्ण.॥
॥ महारमाहाविरकरांगतार, सदासमाले हितदेवमाना, समारमा मागमया सरामा, सिद्धाई कामे लवता दयामा ॥ १॥ इति स्तुतिः
आ स्तवननी सातमो गाथामां बे चरण त्रुटे छे
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