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जनी थापना, वासि वनिता इंद्र ॥ जगमा निति चलाय, मारु देवीनो नंद ॥ प्रभु शील्प देखाडी, चारे जुगल आचार ॥ नरकला बहोतेर, चोसठ महिला सार ॥ ३ ॥ भरतादिकने दीए, अंगादिकनुं राज्य ॥ सुरनर इम जपे, जय जय श्री जिनराज ॥ देइ दान संवच्छरी, प्रभु लीए संयम जार, चार सहस राजाशुं, चैत्रवद आठम सार ॥ ४॥ प्रभु विचरे महियल, वरस दिवस विण आहार ॥ गजरथने घोमा, जन दिए रा. जकुमारी ॥ प्रभुतो नवि लेवे, जुवे शुद्ध आहार ॥ पडिलाभ्या प्रभुजी, श्रीश्रेयांसकुमार ॥ ५॥ फागण अंधारी, अगीयारस शुभ ध्यान ॥ प्रभु अठम भक्ते, पाम्या केवलनाण ॥ गढ त्रणे रचे सुर, सेवा करे करजोड ॥ चक्र रत्न उपन्यो, भरतने मन कोड ॥६॥ मारुदेवा मोहे, दुःख आणे मनजोर ॥ मारो ऋषभ सहे छे, वनवासी दु:ख घोर ॥ तव भरत पयंपे, त्रिभुवन केरो राज ॥ ७ ॥ गजरथ बेसाडी, समवसरणनी पास ॥ भरतेसर आंवे, प्रभुवंदन उवास ॥ सुणी दे. वनी दुंदुभी, उलसित आणंदपुर ॥ आव्या हरखना
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