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आउ पल्योपम भद्रक प्राहिं ॥ ४ ॥ आगल सुसम पंचम आरो, जुगल देह वें गाउ धारो ॥ छट्टो सुसम सुसमा संभारो, जुगल देह त्रण गाउ विचारो ॥५॥ पूछयां वचन कह्यां वली वीरे, वित्तमां धरीया गौतम धीरे ॥ भणतां सुणतां सुखह शरीरे, ऋद्धि रमणीघर भरी वीरे ॥ ६ ॥
॥ कलश || भले स्तवन कीधु, नाम दीधु, गौतम प्रश्नोत्तर सही ॥ संवत सिद्धि मुनि अंग चंदे, भाद्रव सुदी तियां तहिं ॥ १ ॥ तपगच्छ तिलक समान सोहे गुरुश्री विजयानंद सूरीश्वर || सागगनो सुत ऋषभ श्रावक, कहे गच्छ मंगल करु ॥ २ ॥ इतिश्री बार आरानुं स्तवन ॥
अथ श्री आंतरानुं स्तवन.
|| दुहा || शारद शारदना सुपरे, पद पंकज प्रणमेय || चोविसे जिन वरण, अंतर युत संखेय ||१|| वीर पार्श्वने आंतरु, वरस अढीसें होय ॥ पंच कल्याणक पार्श्वना, सांभलजो सहु कोय ॥ २ ॥
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