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नारी पंखी हय हरणा, ते रहशे ते माहे हो।गौ०॥३॥ आगल छट्ठो आरो होशे, दुसम दुसमानाम ॥ एकवीस सहस वरसनो जाणो, नहीं नगरी नहीं गाम हो । गौतम० ॥४॥ गर्भ धरे खट वरसनी नारी, बिलवासी मछ खाय ॥ छेल्ने काया एक हाथनी होशे, सोल वरस, आयु हो ॥ गौ० ॥ ५॥
दुहा॥ आगल वली उत्सर्पिणी, त्यां षट आरा जोय ॥ पेहेलो छट्ठो सारिखो, दुसम दुसमा सोय ॥१॥ ॥ ढाल ॥ १२ ॥ राग केदारो ॥ वांदायणाना ॥ ए देशी ॥
॥ आगल बीजो आरो सारो, त्यारे मेघ होशे वली चारो ॥ पुष्करावर्त खीर अमृत अपारो, चोथा वरसे धृतनी धारो ॥ १॥ फालशे वन वनस्पति बहु गामो, आगल साते कुलगर तामो ॥ दुसम सुसमा त्रिजो अभिरामो, त्रेवीस जिनना तीहां ठामो ॥२॥ नव नारद चक्री अगीआरो, नव वलदेव हशे तीहां सारो॥ वासुदेव नव तेणी वारो, नव प्रतिवासुदेव अपारो ॥३॥ सुसम दुसमा चोथा मांहि, एक जिनवर एक चक्री त्यांही ॥ अंत्ये जुगल होशे बहु जाहि,
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