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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar १८० ॥ दुहा ॥ नवसें त्राणुं वरसज गये पुस्तकारुढ ज होय ॥ चोथे पर्युषण आणसे,कालिकाचार्य सोय॥१॥ ॥ ढाल ॥ ८ ॥ राग परजीओ ॥ हितकरी हीरजीनुं । ए देशी ॥ ॥ अथ सिंधु । वीरथी वरस हजार गया पछीरे, पूर्व होये तव छेदोरे ॥ तेरसयारे वरसे मत हशेरे, बोले नवनव भेदोरे ॥ इन्द्रभूति मोटोरे वीर वचन रसेरे ॥१॥ ए आकणी ॥ दिन दिन काल पडतो सही हशेरे, पुन्यवंता नर क्यांहीरे ॥ नीच कुलीरे नरपति बहु थशेरे, पापतणी मती प्राहेरे ॥ इंद्र० ॥२॥ वास वैराग्य विनय थोडा थशेरे, न मले मन्य मन्नोरे॥ सुपुरुष छते सहु सगपण छांमशेरे, वाहालो होशे धन्नोरे ॥ इंद्र० ॥ ३ ॥ कलियुगहिरे मुनि लोभी हशेरे, विरला कही व्यवहारोरे ॥ धर्म तजशे क्षत्री नर वलीरे, ब्रह्म धरे हथियारोरे ॥ इंद्र०॥४॥ ॥ दुहा ॥ गौतम वीर थकी जशे, वरस सयां ओगणीस ॥ पांच मासने उपरे,भाषा बारज दीस ॥११॥ ॥ ढाल ॥ ९॥ राग रामगीरी ॥ राम भणे हरी उठीये ॥ए देशी॥ ॥ ताम कलंकीरे उपजे, कुल चंडाल असार रे For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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