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१७९ ॥ दुहा ॥ गंगाचारज ते सही, ते मति आणे ठाहि ॥ चारसेने सितेरे, वीरथी विक्रम राय ॥१॥ जे निज शाको थापशे, परदुःख भंजणहार ॥ जैन शिरोमणि ते हशे, शूरवीर दातार ॥२॥ ॥ढाल॥७॥ राग धन्याश्री ॥ पाट कुसुमनी न पुजरूपे ॥ ए देशी ॥
॥ वीर कहे वरस मुजथी जाशे, पंचसयां चउंआल ॥ रोहोगुप्ति निन्हव होय छठ्ठो, भमशे ते बहु काल हो ॥ गौतम दिन दिन कुमति वधशे ॥१॥ भूपति नहीं कोई संयम धारी, दान पचावी दे सेहो ॥पंचसयां चोरासी वरसे, होशे गोष्टामाहील ॥ सातमो निन्हव तेने कहीए, चाले भुंडी चालो हो ॥ गौ०॥ २॥ पंचसयां चौरासी गौतम, वरस गयां तुं जोई ॥ दसपूर्व थाकशे त्यारे, वयरस्वामी लगे होई हो ॥ गौ०॥३॥ वीरथी वरस छसे नव जाये, ताम दिगंबर थाय ॥ सर्व विसंवादी ए निन्हव, आठमो तेह कहाय हो ॥ गौ०॥४॥ वरस छसेने सोलज अंते, पूर्व साडा नव छेद ॥ दुर्बलिका पुत्र ज लगे होई, पाछल सोयने खेद हो ॥ गौ०॥५॥
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