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२७६ ॥ ढाल ॥ ३ ॥ राग केदारो ॥ नगरका वणजारा ॥ ए देशी ॥ ॥ जाखे वीर जिणेसर त्यारे, में संजम लीधो ज्यारे रे ॥ वरस त्रण गयां तिहांयशाले, त्यारे कुशिष्य मिल्यो गोशालोरे ॥ भाखे० ॥ १ ॥ तेजोलेश्या ते पण ग्रही तो, दोय मुनिवर जिन दहतु जाईरे ॥अंते पातक आलोइने, बारमे स्वर्गे सुर होइरे ॥ भाखे० ॥ २ ॥
॥ दुहा ॥ वीर कहे केवली पछी; विचमाहे एतो काल ॥चउद वरस उपन्यो, निन्हव सोय जमाल ॥१॥ तिक्ष गुप्ति बीजो सही, सोल वरस तेह ॥ अंते ते पाछो वले, समकित पामे जेह ॥२॥ ॥ ढाल ॥ ४ ॥ राग गोडी ॥ भावी पटधर वीरनो ॥ ए देशी ॥
॥ दुसम आरोरे आगले, वीस सो वरसनुं आयु छ । होशे वरस वीसनु, दोय हाथनी काय ॥ कहं तुज गौतम गणधर ॥१॥ वळी कहे वीर जीणेसरु, माहरो सुधर्मा शीष्य ॥ छेहे होसे दुप्पसह मुनी, ते विच उदय वीस ॥ कहे० ॥ २॥ युगप्रधान जिणे कह्या, जस एक अवतार ॥ पंचम आरे ते हशे, दोय सहसने चार ॥कहे०॥ ३॥ युग प्रधान सरिखो हशे,
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