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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar देव थया मोहे ग्रह्या, पासे रहे नारी ॥ काम तणे वश जै पड्या, अवगुण अधिकारी ॥ सा० ॥४॥ केई क्रोधी देवता, वली क्रोधना वाह्या ।। के कोईथी बीहता, हथीयार सवाह्या ॥ सा० ॥ ५ ॥क्रूर नजर जेहनी घणी, देखंतां डरीये ॥ मुद्रा जेहनी एहवी, तेहथी गुंतरीये ॥सा० ॥ ६ ॥ आठ करम सांकल जडयां, भमे भवही मजारो ॥ जन्म मरण भव देखीये, पाम्या नहीं पारो॥ । सा० ॥ ७॥ देवथई नाटक करे, नाचे जण जण आगे ॥ वेषकरी राधा कृष्णनो, वली भीक्षा मागे|सा० ॥८॥ मुखे करी वाये वांससी, पेहेरे तन वाघा ॥भावंतां भोजन करे, एहवा भ्रम लागा ॥सा०॥ ९॥ देखो दैत्य संहारवा, थया उद्यमवंतो ॥ हरि हीरणांकुश मारीयो, नरसिंह बलवंतो ॥सा०॥ १०॥ मत्स्य कच्छ अवतार लइ, सहु असुर विदार्या ॥ दश अवतार जुजुआ, दश दैत्य संहार्या ॥ सा॥११॥ माने मूढ मिथ्या मति, एहवा पण देवो ॥ फरी फरी अवतार ले, देखो कर्मनी टेवो ॥ सा० ॥ १२ ॥ स्वामी सोहे जेहवो, तेहवो परिवारो ॥ इम जाणीने परिहरो, जिन हर्ष विचारो॥१३॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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