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|| ढाल || २ || ओधव माघवने कहेजो ॥ ए देशी ॥
॥ जगनायक जिनराजने दाखविये सही देव ॥ मूकाणा जे कर्मथी, सांरे सुरपति सेब ॥ ज० ॥ १ ॥ क्रोध मान माया नहीं, लोभ अज्ञान ॥ रति अरति वदे नहीं, छांडयां मद स्थान ॥ ज० ॥ २ ॥ निद्रा शोक चोरी नहीं, नहि वयण अलिक | मत्सर भय वध प्रा सनो, नकरे तह कीक ॥ ज० ॥ ३ ॥ प्रेम क्रीडा न करे कदी, नहीं नारी प्रसंग || हास्यादिक अढार ए, नहीं जेहने अंग ॥ ज० ॥ ४ ॥ पद्मासन पुरी करी, बेठा श्री अरिहंत || निश्चल लोयण तेहना, नासाग्र रहंत ॥ ज० ॥ ५ ॥ जिनमुद्रा जिनराजनी, दीठां परम उल्लास || समकित थाये निर्मलुं, तपे ज्ञान उजास ॥ ज० ॥ ६ ॥ गति आगति सहु जीवनी, देखे लोकालोक || मनः पर्याय सवि तथा, केवलज्ञान आलोक ॥ ॥ ज० ॥ ७ ॥ मूर्ति श्री जिनराजनी, समतानो भंडार ॥ शीतल नयन सुहामणो, नहीं वांक लगार ॥ ज० ॥ ८ ॥ हसत वदन हरखे हैयुं, देखी श्री जिनराय || सुंदर छबी प्रभु देहनी, शोभा वरणवी न जाय ॥
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