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हाथ ॥ चि० ॥ ३॥ समकित अंक विणा सह ॥बुद्ध०॥ किरियादिक बिन्दु रूप ॥ रुचि० ॥ अंगारमर्दक संबंधथी। बुद्ध०॥ समजो मुज स्वरूप ॥ रुचि०॥४॥ कृष्णपखीओ अनादिनो ॥ बुद्ध०॥ मुजथी मीटे ततखेव ॥ रुचिः ॥ शुक्लपखीयो तव थयो ॥बुद्ध०॥ मिटे अनादि नव सेव ॥ रुचि० ॥५॥ वरस हजार किरिया गई ॥ बुद्ध० ॥ कुंडरीकनी अकाज ॥ रुचि० ॥ मुजविण पूर्वधर गया ॥ बुद्ध० ॥ आवे निगोदमां बाज ॥ रुचि० ॥ ६ ॥ पूर्व बद्धायु गतदंसणी ॥ बुद्ध० ॥ बे विण समकितवंत ॥ रुचि०॥ वैमानिक पदवी लहे ।। बुद्ध०॥ इम महाभाष्य कहंत ॥ रुचि०॥७॥ जीव प्रदेशे पुदगल रह्या ॥ बुद्ध०॥ मिथ्यातना जे समस्त
रुचि० ॥ तेह मीटे जे शुद्धता ॥ बुद्ध० ॥ तेहीज समकित वस्त ॥ रुचि०॥ ८॥ समकितने भावे हुवे । बुद्ध० ॥ दर्शन सही गुरु देव ॥ रुचि० ॥ अगणित महिमा माहरो ॥ बुद्ध०॥ समकित दश रुचि सेव ।। रुचि०॥ ९ ॥ दशमांहि नव अस्तिता ॥बुद्ध०॥ स्याद्वाद रहे मुजमांह ॥ रुचिः ॥ यथार्थ वस्तु हुं पहुं
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