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Achar
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॥ बुद्ध०॥ आठ पक्षथी उछांह ॥ रुचि० ॥१०॥समकित मीटे चारित्र नहीं ॥ बुझ० ॥ आवश्यक मांहे वखाणी ॥ रुचि०॥ समकित तेहज चरण छे ॥बुजा पेहेला अंगनी वाणी ॥ रुचिः ॥ ११ ॥ समकितनी सेवा सारी | बुद्ध० ॥ नही मिथ्यामतिराज ॥ रुचि०॥ खट उपमान छे माहरे ॥ बुद्ध० ॥ सदह्यो मुनिराज ॥रुचि०॥ १२ ॥ ॥ ढाल ॥ ५॥ आज हजारी ढोलो प्राहुणो ॥ ए देशी ॥
॥हवे किरियावादी कहे मन रुली, न गणे झाननो गुण सुख दाई ॥ साजन सुणीयेहे ॥वांझणी सुत रंक राजवी, कीसी सुपने ज्ञान चडाई ॥ सा०॥ नरहर ना नमवारे, संयम धारीने ॥१॥ आंकणी ॥ ज्ञानथी फल भोग नवि लहे, किरियाविण कोइक जीव ॥ सा॥ रसवती जल गुण जाणतां, तृप्ति नवि होये अतीव ॥ सा० ॥ न० ॥२॥ किरिया विण पंथते नवी घटे, विचरे जलनिधि तरे । सा०॥ नटणी निज किरिया विना, जनरंजन कहो कीम करे । सा०॥ न० ॥३॥ शत्रुजय महात्म्यमां कडं, मुनि वेष ते नमवो उछांहि
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