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R॥ पंचेजिय जाति नर आउखु ए, नरमी गति जिननाम ॥ कयुं० ॥ उंच गोत्र ए बारनो ए, अंत थाय छेहडे ताम ॥ क० ॥३॥ उदीरणा इहां नवि लहे ए, सत्ता सुणो वीरतंत ॥ क० ॥ छेखा दुग समे जाणीए ए, बहोतेर पयमी अंत ॥ क० ॥ ४ ॥ नाम यकी हवे ते कहुं ए, सुर खगई गंध दोय ॥क० ॥ फरस आठ वर्ण पांचनी ए, रस तनु बंधन सोय ॥ ॥ क० ॥ ५ ॥ संघातन ए सवि तणी ए, पंच पंच पयडी जेह ॥ क० ॥ निर्माण नाम ते भेलताए, चालीस पुरी एह ॥ क०॥६॥ संघयण अथीर खटसही ए, संस्थान खट सुविवेक ।। क० ॥ अगुरुलघु च्यार अपज्जता ए, अशाता साता एक ॥क०॥ ७॥ प्रत्येक उपांग त्रिण त्रिण कह्यां ए, सुस्वर नीच गोत्र जाण ॥ क० ॥ ए बोहोतेर पयडी तणो ए, अंत हुवे श्ण ठाण॥ क० ॥ ८॥ बेह समे पयडी तेरनो ए, अंत करे गुणवंत ॥ क० ॥ आठ करम खेपबीए, पामी सुख अनंत ।। क० ॥ ९॥ एम अनेक भेद सुंदरु ए, आगम शास्त्र मझार ॥क० ॥ मणिविजय बुध उपदि
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