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Achar
१३६ श्री जिनवर इम उपदिशे ॥१॥ ए आंकणी ॥ सोग अरति अथिर दुग, अयश अशाता केरोरे ॥ बंध नहीं इहां खटतणो, सुर आयुबंध अनेरोरे ॥श्री||२॥ एके उणी साठीनो, अहवा अट्ठावन बंधरे ॥ आहार युगल माहि भेलीए, बीजी पयमी अबंधरे ॥ श्री० ॥ ३ ॥ उदय थकी छोतेर पयडी, थीणद्धी त्रिक दाखीरे ॥ आहाराद्विक ए पांचनो, उदय नहीं सूत्र साखीरे ॥ ॥ श्री० ॥ ४ ॥ अप्रमत्त आदि गुणठाणे, शाता अशाता नर आयरे, पयडी त्रण उणी करो, इम उदिरणा थायरे ॥ श्री०॥५॥ समकित चोथे गुणठाण, सत्ता तिहाथी पेखोरे॥माणिविजय बुध इम कह, प्रमत्त गुण ठाण उवेखोरे ॥ श्री०॥६॥ इति श्री अप्रमत्त गुण स्थानक भास॥
॥ ढाल ॥ १०॥ पंथीडा संदेसडो । ए देशी ॥
॥ गुणठाणं हवे आठम. भाख्यं श्री जिनराज, निवृत्ति नामे जाणीए, जहथी सीझे काज ॥१॥साध सहु तुमे चित्तधरो, आणी उलट अंग, अध्यवसाय विशेषधी, हुवे एहशुं चंग ॥ साधु ॥ २॥ सात भाग
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