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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३५ ॥ बल ॥ ८ ॥ कहे नायक सुणो माहरी ॥ ए देशी ॥ ॥छटुंगुणठाणुं हवे, कहेतां हरख अपाररे, सुणो जिनवाणी रे॥प्रमत्तनाम छे जेहनु,साधन कह्यो निरधार।। सुणो भवी प्राणी रे ॥१॥बंध थकी निश्चय हुवे, त्रेसठी॥ पयंडी जाणिरे ॥ सुणो जिन वाणी रे ॥ प्रत्याख्यानी चारनो, बंध नही इण ठाणेरे ॥ सुणो० ॥ २ ॥ उदय थकी हवे सांभलो, तिर्यंचगति तिरियायुरे ॥ सुणो जिन० ॥ निच गोत्र उद्योतनो, प्रत्याख्यानी कषायरे ॥सुणोभ०॥३॥उदय नहीं ए आठनो, आहारक दोय उदाररे॥ सुणो जि०॥ ते भेळवता एक्यासीनो, उदय कह्यो सुविचाररे ॥ सुणो० ॥ ४ ॥ उदीरणाये अंत हुवे, साता असाता दोयरे ॥ सुणो जि०॥ आहारक द्विक थीणद्धि त्रीक, नर आयु आठ ते जोयरे ॥सु०॥ ॥५॥ सत्ता समकितथी लहो, दाखी आगम साररे ॥ ॥ सुणो० ॥ कपुरविजय गुरुजी जयो, मणिविजय हितकाररे॥सुणोभ०॥६॥ इतिश्री प्रमत्त गुणस्थानकभास। ॥ ढाल ॥ ९ ॥ वसुधाधिप बंदी वळयो ॥ ए देशी ॥ ॥श्री जिनवर श्म उपदिशे, अप्रमत्त गुणटाणरे ॥ सर्वविरति इहां कही, धारो मुनिगुण खाणरे ॥ श्री For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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