________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
Achar
.१३७ करी तेहना, पेहेले अट्ठावन ॥ निद्रा दोयनो अंत करे, पणभाग उपन्न ॥ सा ॥३॥ सुरदुग पंचेद्रिय शुभगति, त्रस नव निरधार ॥ चार शरीर उरलविना, दो अंगोपांग उदार ॥ सा० ॥ ४ ॥ सम चउरंस निर्माणने, जिननाम सुफार ॥ वर्णचार कळी कह्या, अगुरु लहु चार ॥ सा० ॥ ५॥ ए त्रीस पयडी अंतकरे, बढे भाग विचार ॥ बंध कह्यो छवीसनो, सातमो भाग मोजार ॥ सा०॥ ६ ॥ हास्य रति भय दुगंछानो, अंत जिनने वयण ॥ उदय थकी समाकत वली, छेल्लां त्रण संघयण ॥ सा०॥७॥ उदय नहीं ए चारनो, बोहोतेर उदये जाण ॥ उदीरणा अप्रमतथी, भाखी केवल नाण ॥सा०॥८॥ चोथा समकित गुण ठाणथी, सत्ता दिलमें आणि ॥ कपुरविजय गुरु राजथी, मणि वंदे इम वाणी ॥ सा०॥ ९॥ इतिश्री अष्टम निवृत्ति गुणस्थानक भास ॥
॥ ढाल ॥ ११ ॥ निदरडी वेरण हुइरही ॥ ए देशी ॥
॥ अनिवृत्ति नवमुं आदरु, गुणठाणुं हो मुनिवर सुखकार के ॥ अंतमुहुर्त जेहनी, स्थिति जाणी
For Private And Personal Use Only