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बंध होयरे ॥ सुशुण ॥ पयडी एकशत वीसनीरे, लोल, ए परमारथ जोयरे ॥ सु० ॥ वा० ॥२॥ एकसो बावीस आगली रे, पयडी उदय थायरे ॥सु०॥ उदय माव्युं जे होवेरे, ते उदीरणा कहेवायरे ॥ सु० ॥वा०॥ ॥३॥ एहना भेद वळी तेटलारे लोल, सत्ताना वली भेदरे ॥सु०॥ अट्ठावनने एकसोरे लोल, थायते ध्रुवे देशरे ॥ सु०॥ वा० ॥४॥ पेहेले गुणठाणे हवेरे लोल ॥ एकसो सतर बंधरे ॥ सु०॥ तीर्थंकर नाम भेलतार लोल, आहारक दोय अबंधरे ॥सु०॥ वा० ॥५॥ पयडी मिश्र समाकत सुणोरे लोल, आहारक द्विक जिन नामरे ॥ सु०॥ उदय नहीं ए पांचनोरे लोल, गुणठाणे पेहेले जामरे ॥ सु० ॥ वा० ॥ ६॥ कर्म स्थिति सत्ता कहीरे लोल, पयडी शत अड्यालरे ॥ ॥सु०॥ गुणठाणे पेहेले सहीरे लोल, भाखी देव दयाळरे ॥ सु०॥ वा० ॥ ७॥ इणे गुणठाणे प्राणीयारे लोल, नरक निगोद मोजार रे ॥ सु० ॥ कहेता पार नउपजेरे लोल, ते जाणे किरताररे ॥सु०॥वा०॥८॥ एह मिथ्यात्वथी टालियारे लो, श्री जिन जगदाधाररे॥सु०॥
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