SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 143
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२९ प्रत्येक पराघात उसास, आताप उद्योत अगुरुलहु ए॥७॥ तीर्थंकर निर्माणरे, पराघात कर्म, त्रस दशको कहूं सुंदरु ए ॥ त्रस बादर पजत्तरे, प्रत्येक थीर शुभ, सुभग सुस्वर आदे यशो ए ॥ ८॥ थावर सुहुम अपजरे, साधारण अथिर ॥ असुन दुभग सातमु ए ॥ दुस्वर अनादेयरे, अयश ए दश स्थावर इणिपरे जाणि ए ॥ ९ ॥ एटली त्राणुं नेद रे, बंधन पांचनां, सत्ताये पन्नर भेद हुवे ए ॥ गोत्र करमना भेदरे, उंच अने नीच, अंतराय वळी आठमुंए ॥१०॥ दान लाभ अंतरायरे. भोग उपभोग, वीयांतराय ए पांचमु ए ॥ एकसो अट्ठावन्नरे, पयडी कर्मनी, मणिविजय बुध उपदीशी ए ॥ ११ ॥ इति श्रीकर्म पयडी द्वितीय भास ॥ ॥ ढोल ॥ ३ ॥ केवल नाणे जाणतोरे लोल ॥ ए देशी ॥ ॥ज्ञान दिवाकर भाखीयोरे लोल ॥ गुणस्थानक विचाररे ॥ सुगुण नर ॥ लेशथकी हुं वरणवू रे लोल, शास्त्र तणे अनुसाररे ।। सुगुण नर ॥१॥ वारो मिथ्यात्वने आवतोरे, जेम सीझे सवि कामरे ॥ ॥ सुगुण०॥ प्रमादे करी जीवनेरे लोल, ओघ थकी For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy