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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२८. ॥ ढाल २ ॥ बे कर जोडी तामरे ॥ ए देशी ॥ नाम करमनो भेदरे, एकसो त्रणसुं॥ ते विवरी हव कहुं ए ॥ चार गतिनां नामरे, एकेंद्रि आदि पंचेद्रि पांच जाति कहीए ॥ १॥ औदारिक वैक्रियरे, आहारक तेजस, पांचमुं कार्मण तनु सहीए ॥ अंग उपांग ते जाणीरे, अंगोपांग त्रीजें, औदारिक पंच बंधना ए ॥ २ ॥ संघातन विचारीरे, पंचभेदे करी, औदारिक आदिगणो ए॥ वज्रऋषभ नाराचरे, ऋषभनाराच, नाराच अर्ध कीलीका ए ॥३॥ छेवटुं संघेणरे बड़े भाखीउं, षट संस्थानज जीवना ए ॥ सम चउरस्त्र न्यग्रोध रे सादिक, कुब्ज, वामन हुंडक भाखीओ ए ॥ ४ ॥ कालो नीलो रातोरे; पीलो 7जलो वर्ण पांचे जाणीएरे ॥ सुरलि दुरभि गंधरे, पंचरस कह्यो, तीखो कडवो कसायलो ए ॥५॥ खाटो मीठो होयरे, फरस आठजे, गुरु लघु मृदु खर शीतलो ए । उष्ण स्निग्ध रुक्षरे, अनुपुर्वी, चारे गति जुजुवीरे ॥ ६॥ शुभ अशुभ पति दोयरे, ते वली वरणवी, पिंड प्रकृति चौदस हवीए ॥ हवे आठ For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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