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भेद ॥ चख्खु अचख्खु अवधि केवलीजी, दर्शनना ए भेद ॥ भविक० ॥४॥ निद्रा पहेली निद्रानिद्राजी, त्रीजी प्रचला वखाण ॥ प्रचला प्रचला चोथी कहीजी, थिणद्धि पंचम जाण ॥ भ० ॥ ५॥ दर्शनावरणीय तणाजी ए नवभेदज धार ॥ शाता अशाता वेदनीजी, जाणो ते निरधार ॥ भ० ॥६॥नेद अट्ठावीस मोहनीजी, समकित मोह मिच्छन्त ॥क्रोध मान माया सहीजी; लाभ ए सवे नित ॥ भ० ॥७॥ संज्वलन प्रत्याख्यानीओजी, अप्रत्याख्यान विशेष ॥ चोथो अनंतानुं बंधियोजी, प्राणीतूं उवेख ॥ भ० ॥ ८॥ प्रत्येके एक एकनाजी, भेद कह्या अरिहंत ॥ च्यार च्यार करतां सोल हवेजी, टालो ते गुणवंत ॥भ०॥९॥ हास्य रति अरति भय परिहरुजी, सोग दुगंछा टाल ॥ नर स्त्री नपुंसक वेदथीजी, प्राणी तुं मन वाल ॥ ॥ ज० ॥ १० ॥ देवता नर तिरि नारकीजी, आयुभेद विशाल ॥ कपुर विजय बुद्धराजथीजी, मणिविजय रंगरसाल ॥ भ० ॥ ११॥ इति चारकर्मपयडी प्रथम भाग ॥
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