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करूं तुज सान्निध्ये, अष्टमी स्तवन उदार ॥ शत मुखे जीभे को स्तवे, तुज गुण नावे पार ॥ ४॥
॥ ढाल ॥ १ ॥ नमवा नेमि जिणंदने ॥ ए देशी ॥
अष्टमी तिथि भावे आचरो, स्थिरकरी मन वच कायारे ॥ ध्यान धरम ध्याइए, टाळीए दुष्ट अपायरे ॥ आं० ॥१॥ पोसहपण धरीये सही, समता गुण आदरीयेरे ॥ राज्यकथादिक वरजीए, गुणीजन गुण आचरीएरे ॥ अ० ॥२॥ षटलेश्यामांहे करी, आद्य त्रिहं अप्रशस्तरे ॥ वरजो सजन दुर ए, धरो त्रिहुं अंत प्रशस्तरे ।। अ०॥३॥ शल्य त्रिहं दुरे तजो, वरजो कुमति कुनारीरे ॥ सदगति केरी निवारीका, दुर्गति केरी ए बारीरे ॥ आं० ॥४॥ रमीए सुमति नारीसुं, करीए दान सहायरे ॥ भैत्री प्रमोद करुणादिक, धरीये दिल सुखदायरे ॥ अ०॥५॥वाचना पृच्छना तिम वली, अनुप्रेक्षा धर्म संगरे । परावर्त्तना पंच नेद ए, करीए धरी मनरंगरे ॥ अ०॥ ६ ॥ झानावरणीय दर्शना, वरणी वेदनीय तेमरे ॥ मोह आयु नाम गोत्रए, आठमुं अंतरायरे ॥ अ०॥७॥ए अष्ट कर्म
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