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विनाशिनी, अष्टमी तिथि जिन भाखीरे ॥ आराधनादिक ए क्रिया, मानव गति एक साखीरे ॥ अ०॥८॥
॥ ढाल ॥२॥ मुनिवर आर्यसुहस्तीरे ॥ ए देशी ॥ - बासठ मार्गणा द्वाररे प्रभुजीए कह्या, सुंदर सुललित वयण थीए । तेहमा दश द्वाररे मोक्ष जिनेश्वरे कहिया, अवरमा नवि लह्यां ए ॥१॥ तिण कारण दिव्य मोक्षरे, कारण सुख तणा, पामे मानव भवथकी ए॥ दुलही दश दृष्टांतरे, लहिये मनुज भव, हारो मद विषय थकी ए ॥२॥ पंच भरत मजाररे, पंच औरव्रत, पंच महाविदेहमा ए ॥ पंनर कर्मभूमि रे, नाणी जिनवरे, धर्म कह्यां नहि अन्यमांहे ॥ ३ ॥ क्रोध मानने मायारे, लोभ तिम वली, ए चारे दुखदायीया ए ॥ अप्रत्याख्यानादिकरे, करतां भेद ए सोल, होए तजो भाइआए ॥४॥ थोडापण ए कषायरे, कीधां दुख दीए, मित्रानंद तणी परे ए ॥ ते माटे तजो दुरेरे, हृदयथकी वली, जेम अनुक्रमे शिव सुख वरोए ॥५॥ अष्टमी तिथि आराधेरे, अष्ट प्रवचन, माता आराधक कहु ए ॥ अनुक्रमे लहे निर्वाणरे, ए तिथि आराधे, मुक्ति
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