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Achar
वृष्टि, चमर बत्र विराजेरे ॥ आसन भा मंडल जिनदीपे, दुंदुभी अंबर गाजेरे ॥ श्री० ॥ ५॥ खंभात बंदर अतिय मनोहर, जीनप्रासाद घणा सोहिएरे, बिंब संख्यानो पारन लेवू, दर्शन करी मन मोहिएरे ॥श्री० ॥ ६॥ संवत अढार ओगण चालिस वर्षे, आश्विन मासे उदारोरे, शुक्लपक्ष पंचमी गुरुवारे, स्तवन रच्युं छे त्यारेरे ॥ श्री० ॥७॥ पंडित देव सोभागी बुद्धि लावण्य, रतन सोभागी तणे नामरे ॥ बुद्धि लावण्य लीयो सुख संपुरण, श्री संघने कोड कल्याणरे ॥ श्री० ॥ ८॥
अथ अष्टमी स्तवन. ॥ दहा ॥ जय हंसासणी शारदा, वरदाता गुणवंत ॥ माता मुज करुणा करी, महियल करो महंत ॥ ॥ १ ॥ सोल कला पूरण शशि, निर्जित एण मुखेण॥ गजगति चाले चालती, धारती गुणवर श्रेण ॥२॥ कवि घटना नवनवी करे, केवल आणी खंत ॥ माता तुज सुपसाउले, प्रगटे गुण बहुभांत ॥३॥ माता
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