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॥ भ० ॥ वीरनी वाणी सांभळीरे लाल, उछरंग थय, बहु लोकरे ॥ भ० ॥ ना० ॥ ३ ॥ इणि बीजे केई तर्यारे लाल, वळी तरशे केई शेषरे ॥ ज०॥ शशिनिधि अनुमानथीरे लाल, सइला नागधर एकरे ॥ भ० ॥ ४॥ असाड शुदी दशमी दीनरे लाल, ए गायो स्तवन रसालरे ॥ भवि०॥ नवल विजय सुपसायथीरे लाल, चतुरने मंगल मालरे ॥ भ० ॥ भा० ॥ ५॥
कलश ॥ इय वीर जिनवर, सयल सुखकर, गायोअति उलट भरे। असाड उज्वल दशमी दिवसे, संवत अढार अट्टोत्तरे॥ बीज महिमा एम वरणव्यो, रही सिद्धपुर चोमासुए ॥ जेह भविक भावे भणे गुणे तस घर लील विलासए ॥ १॥
आठमनुं स्तवन. दोहा ॥ पंच तीरथ प्रणमुं सदा, समरी शारद माय ॥ अष्टमी स्तवन हरखे रचुं, सुगुरु चरण पसाय ॥१॥
॥ ढाल ॥१॥ हारे लाला जंबुद्वीपना भरतमां, मगध देश महंत रे ॥ ला०॥ राजगृही नगरी मनोहरु, श्रेणीक बहु बलवंतरे ॥ ला० ॥ १॥ अष्टम
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