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Achar
बीजनुं स्तवन. । दुहा ॥ सरस वचन रस वरसति, सरसति कला भंडार ॥ बीज तणो महिमा कहुं, जिम कह्यो शास्त्रमोझार ॥ जंबुद्विपना भरतमा, राजग्रही नगरी उद्यान ॥ वीर जिणंद समोसर्या, वांदवा आव्या राजन ॥२॥श्रेणीक नामे भूपति, बेठा बेसण ठाय॥ पुछे श्री जिनरायने, यो उपदेश महाराय ॥ ३ ॥ त्रिगडे बेठा त्रिभुवनपति, देसना दिये जीनराय॥ कमल सकोमल पांखडी, जिनवर हृदय सोहाय ॥४॥शशि प्रकट जिम ते दिने, धन ते दिने सुविहाण ॥ एक मने आराधतां, पामे पद निर्वाण ॥५॥
॥ ढाल ॥१॥ कल्याणक जीननां कहं सुण प्राणीजीरे, अभिनंदन अरिहंत ॥ ए भगवंत भविप्राणीजीरे ॥ महाशुद बीजने दीने ॥ सु० ॥ पाम्या शीव सुखसार ॥ हरख अपार ॥ भवि० ॥१॥ वासुपूज्य जिन बारमा ॥ सु०॥एहज तिथे नाण ॥ सफल विहाण ॥ भवी० ॥ अष्ट करम चुरणकरी ॥ सुणो०॥ अवगाहन एकवार ॥ मुगति मोझार ॥भ०॥ अर
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