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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हीये सतरमी सार, अढारमी आखी वासुदेव विस्तार ॥५॥ मिश्री घृत खीरे मेल्यां जेह सवाद, एहवी लहे वाणी ओगणीसमे प्रासाद ॥ भणियो नावे भूल सुत्र अर्थ सुविचार, ते कुट्ठगबुद्धि विसम लबद्धि विचार ॥६॥ एके पदे भणीये आवेपदलखेकोडि, एकवीसमी लबधि पाया[सारिण जोडि ॥ एके अर्थे करी, उपजे अर्थअनेक॥ बावीसमी कहीए, बीज बुद्धि सुविवेक॥७॥ ॥ ढाल ॥ ३ ॥ कपुर होये अति उजलुरे ।। ए देशी ॥ सोलह देश तणी सहीरे, द हक शक्ति वखाण ॥ तेह लबधि तेवीसमीरे, तेजो लेश्या जाण ॥ १॥ चतुर नर सुणज्यो ए विचार, वारु लबधि विचार ॥ चतुरनर० ॥ चौद पूरवधर मुनिवरुरे, उपजता संदेह ॥ रुप नवो रची मोकलेरे, लबधि आहारक एह ॥ चतुरनर० ॥ २ ॥ तेजो लेश्या अग्निनेरे, उपसमवा जलधार ॥ मोटी लबधि पचवीसमीरे, शीतो लेश्या सार ॥ चतुर० ॥ ३ ॥ जिण शक्तिशुं विकुरवेरे, विविध प्रकारे रुप ॥ सदगुरु कहे छत्रीसमीरे, वैक्रिय लबधि अनुप ॥ चतुर० ॥ ४ ॥ एकण पात्रे आदमीरे, जिमावे केई For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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