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रूपी सहु जाणिये जिण करी, सातमी लबधि ते अवधि ज्ञाने घणी ॥४॥
॥ ढाळ ॥ २ ॥ शारद बुध दाई ॥ ए देशी ॥ __ आव्यो तिहां नरहर एजाति ए देशी ॥ हवे अंगुल अढीये उणो मानुष खित्त, संज्ञी पंचेडि तिहां जेवसे विचित्त ॥ तसु मनना चित्त ते जाणे थुल प्रकार, ए ऋजुमति नाम अठम लबधि विचार ॥१॥ संपूर्ण मानुष खेत्रे संझावंत, पंचेंडि जे वैमनवातां तसुतंत ॥ सुक्षम पर्याये जाणे सह परिणाम, ए नवमी कहीये विपुल मति शुभ नाम ॥ २॥ जिण लबधि प्रमाणे उडी जाये आकाश, ते संघा विद्या चारण लबधि प्रकाश ॥ जसु वचन श्रापे खिणमा खेरु थाय, ए लबधि अगीआरमी आसीवि कहेवाय ॥३॥ सहु सुक्ष्म बादर देखे लोक अलोक, ते केवली लबघि बारमोये सहु थोक ॥ गणधर पद लहीए तेरमी लबधि प्रमाण, चौदमी लबधि करी चौद पुरवजाण ॥ ॥ ४ ॥ तीर्थकर पदवी पामे पंदरमी लबधि, सोलमी मुखदाई चक्रवर्ति पद ऋद्धि ॥ बलदेव तणा पद ल.
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