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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [७७] हीनोके हिसाबसे हमेशां उक्त पर्व फिरते हुए चले जायेगे, जैसे मु. सल्मानोके ताजिये- हर अधिक मासमें बदलते हैं" यह लेखभी उ. सूत्र प्ररूपणारूपहीहै, क्योंकि जिनेंद्रभगवान्ने अधिकमहीना आनेपरभी वर्षाऋतुमेही पर्युषणा करना फरमायाहै,मगर वर्षाऋतु बिना माघ, फाल्गुन, चैत्र, वैशाखमें शरदी व धूपकालमें पर्युषणा करना नहीं फरमाया, जिसपरभी आप अधिक महीनेके ३० दिन उडा दे. नेकेलिये मुसल्मानोके ताजियोंके दृष्टांतसे हर अधिक महीनेके हिसाबसे बारोही महीनोंमें [छही ऋतुओं में पर्युषणापर्व फिरते हुए च. ले जानेका बतलाते हो, सो किस शास्त्र प्रमाणसे,उसकाभी पाठ बतलाइये, या आपनी भूलका मिच्छामि दुकडं दीजिये, अथवा सभामें सत्य ठहरनेको तैयार हो जाईये ॥२॥ और भी 'पर्युषणापर्व निर्णय' के मुख्यपृष्ठपर 'अधिकमहीना जिसवर्षमें आवे उसवर्षका नाम अभिवर्द्धित संवत्सर कहते हैं, और वो आभिवर्द्धित संवत्सर तेरह महीनोंका होता है, मगर अधिक महीना कालपुरुषकी चूला यानी चोटी समान कहा इसलिये उसको चातुर्मासिक-वार्षिक और कल्याणिकपर्वके व्रत नियमकी अपेक्षा गिनती में नहीं लियाजाता' तथा 'अधिकमास निर्णय' के प्रथम पृष्ठके अंतमें 'अधिक महीना काल. पुरुषकी चूला यानी चोटी समानहै,आदमीके शरीरके मापमें चोटीका माप नहीं गिनाजाता, इसतरह अधिक महीना अच्छे काममें नहीं लिया जाता' इस लेखसे अधिक मासको केशोंकी चोटी समानकहते हो और गिनती में लेना निषेधकरते हो सो भी सर्वथा जिनाशा विरुद्ध है, देखो-चोटी तो १०-२० अंगुल, अथवा १-२ हाथ लंबीभी होसकतीहै, व नहींभी होतीहै. और शरीरके मापमें चोटीका कुछभी भाग नहीं लियाजाता, इसीतरह यदि अधिकमासभी चोटी स. मान गिनतीमें नहीं लिया जाता तो फिर उसको गिनतीमे लेकर १३ महीनोंके, २६ पक्षोंके,३८३ दिनोंका अभिवर्द्धित संवत्सर क्यों कहा? देखिये-जैसे पर्वतोंके शिस्त्रर और घास एकसमान नहीं है,तथा.मंदिरोके शिखर और ध्वज एक समाननहीं हैं.तैसेही चूला याने शिखरऔर चोटीएकसमाननहींहै, इसलिये चोटीकहोंगे तो गिनती नहीं औ. र गिनतीमें लेवोंगे तो चोटी समाननहीं. चोटीकहोंगे तो अभिवद्धि. त संवत्सर कैसे बना सकोगे? इसको विचारो, अधिकमासको चो. टीसमान कहकर गिनती छोडदेना किसीभी जैनशास्त्रमें नहींकहा, निशीथचूर्णि व दशवकालिक वृत्तिमें कालचला याने शिखरकहाहै, For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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