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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ७६ ] · २७-२८ ॥ और मासवृद्धि होने परभी पर्युषणा के पिछाडी ७० दिन रहनेका किसी भी शास्त्र में नहीं लिखा, समवायांगका पाठ तो मांस वृद्विके अभावका है, इसलिये अधिकमास होनेपरमी ७० दिन रहनेका कहना शास्त्रकारों के अभिप्रायविरुद्ध होनेसे मिथ्या है, देखो लघुपर्युषणा निर्णय के पृष्ठ १८-१९-२० २१ ॥ इसीतरहसे दोनों आषाढ वगैरहका खुलासाभी लघुपर्युषणा के पृष्ठ २५-२६ में अच्छी तरह से दिखला दिया था। जिसपर भी न्यायरत्नजी आपने मैरे सब लेखाका आगे पीछेका संबंध तोडकर मैरे अभिप्रायके विरुद्ध होकर अधूरे अधूरे लेख, भोलेजीवों को दिखलाकर अपनी दोनों किताबो में आप वारंवा र अधिक महीने के दिनों को गिनती में से उडादेनेकेलिये कोई भी शास्त्रका पाठ बतलाये बिनाही, और लघुपर्युषणाके पृष्ठ २७-२८ का लेखको पूरा बिचारे बिनाही, 'अधिकमासनिर्णय' के दूसरे पृष्ठकी आदिमें आप लिखते हैं, कि-'अधिक महीने में विवाह सादी वगेरा कामनहीं किये जाते, दीक्षा प्रतिष्ठा वगैरा धार्मिक कामभी अधिकमहीने में नहींकिये जाते, फिर पर्युषणापर्व जैसा उमदापर्व अधिक महीने में कैसेकिया जाय.' तथा ' पर्युषणापर्व निर्णय' के मुख्य पृष्ठ परभी 'दीक्षा प्रतिष्ठा और दुनियादारीके विवाह सादी वगेराकाम अधिक महीने में नहीं किये जाते, तो फिर पर्युषणापर्व जैसा उमदापर्व कैसे किया जाय' यह दोनों लेख आपके जिनाशाविरुद्ध उत्सूत्र प्ररूपणारूपही हैं. यदि मुत्तवाले दीक्षा प्रतिष्ठा व संसारी विवाह सादीकी तरह पर्युषणा भी आप मानोंगे, तबतो चौमासे में, तथा १३ महीनों तक सिंहस्थवाले वर्ष में भी पर्युषणा करनाही नहीं बनेगा, मगर शास्त्रों में तो चौमासेमैदी और सिंहस्थवाले वर्षमै भी वर्षा ऋतुमेही दिनोंकी गिनती से५०वें दिन अवश्यही पर्युषणा करना कहा है, मुहुत्तेवाले विवाहसादी वगैरह लौकिक कार्योंके साथ, बिना मुहुर्त्तवाले लोकोत्तर पर्युषणापर्वका कोई भी संबंध नहीं है. सिंहस्थ, अधिकमास, क्षयमास, गुरु शुक्रका अस्त, चौमासा, व्यतिपात, भद्रा, और चंद्र व सूर्य ग्रहण वगैरह कोई भी योग पर्युषणा करने में बाधक नहीं होसकते, इसलिये आपका उत्सूत्र प्ररूपणाका और प्रत्यक्ष अयुक्त व मिथ्यालेखको पीछा खींच लीजिये और मिच्छामि दुक्कडं प्रकट करिये, नहीं तो सभामें सिद्ध करनेको तैयार हो जाईये ॥ १ ॥ औरभी आपने 'मानव धर्म संहिता ' के पृष्ठ ८०० में लिखा है कि "अगर अधिकमास गिनती में लियाजाता हो तो पर्युषणापर्व दूसरे वर्ष श्रावण में और इसतरह अधिकम For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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