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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [२६] और भी देखो-३५४ दिने संवत्सरी प्रतिक्रमण करें,तो भी व्यवहार में ३६०दिनोंकेक्षामणे करनेमें आतेहैं,मगर अप्रत्याख्यानीय कषायके ३६० दिनोंके एक वर्षकी पूरेपूरी स्थितिका निश्चयमें बंध पडा होवे वह बंध, ३५४ दिनोंमें (३६०दिनोंका) कभी क्षय न हो सकेगा,किंतु वो तो समय २ के हिसाबले पूरे पूरे ३६० दिनही भोगने पडेंगे । इ. सीतरहसे चौमासी, व पाक्षिककाभी भावार्थ समझलेना. इसलिये व्यवहारिक क्षामणे करनेके साथ निश्चय संबंधी कर्मबंधनकी स्थितिका दृष्टांतसे भोले जीवोंको मर्यादा उल्लंघन होनेका भय बतलाते हुए अपनी विद्वत्ताके अभिमानसे अधिकमहीना निषेध करना चा. हते हैं, सो प्रत्यक्ष शास्त्रविरुद्ध होनेसे सर्वथा अनुचित है। ३७-चूलिका संबंधी एक अज्ञानता ॥ . कितनेक लोग शास्त्रोके रहस्यको समझे बिनाही कहतेहैं, किजैसे-एक लाख योजनके मेरुपर्वतमें उनकी चूलिका नहीं गिनीजाती है, तैसेही-१२ महीनोंके एक वर्ष अधिकमहीनाभी नहीं गिना जाता। ऐसा कहकर अधिकमहीनेकी गिनती उडाना चाहते हैं.सो उन्होंकी आज्ञानताहै,क्योंकि एक लाख योजनके मेरुपर्वत ऊपर ४० योजनकी उंची चूलिका है,उसपर एक शाश्वत जिन चैत्य है, उनमें १२०शाश्वती श्रीजिनप्रतिमायें हैं, इसलिये ४० योजनकी चूलिकाके प्रमाणकी गिनतीसहित विशेषतासे एक लाख योजनके ऊपर४०योजनके मेरुपर्वतका प्रमाण क्षेत्र समासादि शास्त्रोंमें खुलासालिखाहै, तैसेही १२महीनोंके३५४दिनोंके एकवर्षके प्रमाण उपर अधिकमही. नेके ३०दिनोंकी गिनतीसहित ३८३दिनोंकोभी एक वर्षकी गिनतीमें लियेहैं, इसलिये चूलिकाके दृष्टांतसे अधिकमहीना गिनतीमें निषेध नहीं होसकता, मगर गिनती में विशेष पुष्ट होता है । औरभी दे. खो-पंचपरमष्ठिमंत्र कहनेसे सामान्यतासे पांच पदोंके ३५ अक्षरो. का नवकार कहाजाताहै, मगर उसपरकी ४ चूलिकाओंके ४ पदोंके ३३ अक्षर साथमे मिलनेसे विशेषतासे नवपदोंके ६८ अक्षरोका नवकार मंत्र' चूलिकाओंके प्रमाणकी गिनतीसहित कहने में आता है. इसी तरहसे दशवकालिक व आचारांगसूत्रकी दो दो चूलिकाओका प्रमाणभी गिनतीमें आताहै. तैसेही सामान्यतासे एक लाख योजनका मेरुपर्वत,व१२महीनोंका एकवर्ष व्यवहारसे कहने में आता है मगर विशेषतासे निश्चयमें तोचूलिकाके प्रमाणकी गिनतीसहित एक लाख चालीस योजनका मेरुपर्वत, व आधिक महीनेकी गिनती For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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