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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [३५] नेका समझना चाहिये. और ३५४ दिने, या ३८३ दिने संवत्सरीपर्व होता है, तोभी ३६० दिन,या ३९०दिन कहने आतेहैं, सो ऋतुसंव. त्सरसंबंधी नहीं,किंतु चंद्र या अभिवति संवत्सरसंबंधी व्यवहारसे कहने में आते हैं. देखो-चंद्रमासकी अपेक्षासे एक पक्ष १४ दिन ऊपर कुछ भाग प्रमाणे होता है, मगर पूरे १५ दिनोंका नहीं होता, तो भी व्यवहारमें लोकसुखसे उच्चारण करसके; इसलिये १५ दिनों का एकपक्ष कहनेमें आताहै। यह अधिकार ज्योतिकरंडपयन्नवृत्ति वगैरह शास्त्रों में खुलासालिखाहै । इसीतरहसे महीनेके३०दिन या व र्षके३६०दिनभी व्यवहारकी अपेक्षासे समझने चाहिये, मगर निश्चय में तो जितने दिनोंसे संवत्सरीपर्वमें वार्षिक क्षामणे होवेगे उतनेही दिनोंके कर्मोंकीनिर्जराहोगी,किंतु ज्यादे कम कभीनहीं हो सकेंगी। और संजलनीय, प्रत्याख्यानीय, अप्रत्याख्यानीय कषायकी अनु क्रमसे,एक पक्षके१५दिन,४महीनोंके१२०दिन,व १२ महीनोंके३६०दि. नोंके एक वर्षकी स्थितिकाप्रमाण शास्त्रों में बतलायाहै,सो,व्यवहारसे बतलायाहै,मगर निश्चयमें तो रागद्वेषादि तीन परिणामों के अनुसार न्यूनाधिकभी बंध पडसकताहै. इसलिये उसकी स्थितीके प्रमाणकी गिनती सूर्य संवत्सरकी अपेक्षासे होती है । और क्षामणे तो चंद्रसंवत्सरकी अपेक्षासे व्यवहारसे करनेमें आतेहैं,सो ऊपरमें इसबात का खुलासा लिख चुके । इसलिये एकवर्षके ३५४दिन होने परभी व्यवहारिक दृष्टिसे ३६० दिनोंके क्षामणे करनेका, और कषायादि कर्मोंकीस्थिति परिपूर्ण ३६० दिनतक निश्चय भोगनेका,दोनों विषय भिन्न अपेक्षासे, अलगर संवत्सरोंसंबंधी हैं, इसलिये इन्होंके आपस में कोई तरहका विरोधभाव कदापि नहीं आसकता.जिसपरभी चंद्र संवत्सरसंबंधी व्यवहारिकक्षामणेकरनेका, और सूर्यसंवत्सरसंबंधी निश्चयमें कौंकीस्थिति पूरेपूरीभोगनेका रहस्यको समझेविनाही अ धिकमहीनेके३०दिनोंको गिनतीमें लेनेका छोडदेनेकेलिये, अधिकम हीनेकोगिनती लेवे,तो कषायकीस्थितिका प्रमाणबढजानेसे मर्यादा उल्लंघन होनेकाकहते हैं, सो शास्त्रोके मर्मकोनहीं जानने के कारणसे अज्ञानताजनक होनेसे सर्वथा मिथ्याहै.देखो-एकयुगके दोनों अधिक महीनोंके दिनोंकोंगिनती नहीलेवेतो सूर्यसंवत्सरका प्रमाणभीपुरा नहीं हो सकताहै,इसलिये दोनों अधिकमहीनोंके दिनोंको अवश्यमेव गिनतीमें लेनेसेही पांच सूर्यसंवत्सरोके एक युगमे १८३० दिन परे होसकते हैं. इसलिये अधिकमहीना गिनतीमे कभी नहीं छुट सकता For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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