SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ३४ ] युग पूरा होता है. और एक युगके सभी दिनोंकों अभिवर्द्धित महीने के हिसाब से गिननेमें आयें तबतो कुल ५७ अभिवर्द्धित महिनोसेही १ युग पूराहोता है । इसलिये शास्त्रोंके नियमसे तो अधिकचंद्रमास के या अधिकनक्षत्रमासके किसी भी महीनेके एकदिनकोभी गिनतीमें निषेध करनेवाले तीर्थंकर गणधरादि महाराजोंके कथन के प्रमाणका भंग करनेवाले होनेसे, उन महाराजोंकी आशातनाके भागी बनते हैं. क्योंकि चंद्रादि अधिक महीनोंके दिनोंकीगिनती सहितही पांच वर्षोंके एक युगके १८३० दिनोंका प्रमाण पूरा होसकता है, अन्यथा कभी पूरा नहीं हो सकता है. 1 और तिथि, वार, मास, पक्षादि व्यवहार चंद्रमासके हिसाबसे चंद्रसंवत्सर की अपेक्षासेमानते हैं । और प्राणियोंके कर्म बंधनकी स्थिति व आयुष्प्रमाणकी स्थिति सूर्यमास के हिसाब से सूर्य संवत्सकी अपेक्षासे मानते हैं, इसलिये सूर्य संवत्सर के हिसाब सेही मास, अयन, वर्ष, युग, पूर्व, पूर्वाग, पल्योपम, सागरोपमादिकके काल प्रमाणसे ४ गतियोंके सर्वजीवोंके आयुका प्रमाण व आठही प्रकारके कर्मोंकी जघन्य, मध्यम, उत्कृष्टस्थितिके बंधका प्रमाण, और उत्सर्पिणी अवसर्पिणीकालसे कालचक्रकाप्रमाण, यहसर्वबातें सूर्यसंवरसरकी अपेक्षासेमानते हैं. इसकाअधिकार लोकप्रकाशादि शास्त्रोंमें प्रकटही है । और वार्षिकक्षामणे करनेका तो चंद्रमासके हिसाब से चंद्रसंवत्सरकी अपेक्षासेमानते हैं, मगर चंद्रसंवत्सर के ३५४ दिन होते हैं. तो भी व्यवहारिकरुढीसे एकवर्षके ३६० दिन कहने में आते हैं. तैसेही जब महीना बढे तब उसवर्षके १३ महीनोंके ३९० दिन कहने में आते हैं. मगर कितनेक लोग ऋतु संवत्सरकी अपेक्षासे ३६० दिनोंके वार्षिक क्षामणे करने का कहते हैं, परंतु ऋतु संवत्सर तो पूरे ३६० दि. नोका होताहै, उसमें कोई भी तिथिकेक्षय होने का अभाव है, व तीसरे वर्षमै महीना बढनेकाभी अभाव है, और चंद्रसंवत्सर ३५४ दिनोंका होनेसे संवत्सरी के रोज चंद्र संवत्सर पूरा होसकता है, ऋतुसंवत्सर पूरा नहीं होसकता है, और तिथि, वार, मास, पक्ष, व र्षका व्यवहारभी ऋतुसंवत्सर की अपेक्षासे नहीं चलता, किंतु चंद्र संवत्सरका अपेक्षासे चलता है, और ऋतु संवत्सरके ३६० दिनतो संवत्सरीका पर्व हुए बाद ६ रोजसे दशमीको पूरे होते हैं, और संव त्सरी पर्वतो ४ या ५ को करनेमें आता है, इसलिये वार्षिक क्षामणे ऋतुसंवत्सरकी अपेक्षाले नहीं, किंतु चंद्रसंवत्लर की अपेक्षासे कर मगर For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy