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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [३७] सहित १३ महीनोंका अभिवर्द्धित वर्ष कहने में आता है, सो सर्व शा स्त्र प्रमाणोंसे प्रकटही है. इसलिये अधिक महीना व मेरुचूलिका वगैरह सब विशेषतासे गिनती में आते हैं, जिसपर भी चूलिका के नामसे अधिक महीना गिनती में निषेध करते हैं, उनकी अज्ञानता है । ३८ - पर्युषण पर्व शाश्वत है; या अशाश्वत है ? यद्यपि पांच भरतक्षेत्रों में व पांच ऐरवर्तक्षेत्रों में चौवीस तीर्थकरमहाराजोंके शासन में प्रथम और चौवीसवें तीर्थकर महाराजके साधुओको चौमासा ठहरने व पर्युषणापर्व करने संबंधी निज निज तीर्थकी अपेक्षासे तो पर्युषणापर्व अशाश्ववत है, मगर अनादि कालकी अपेक्षासे तो शाश्वतही है. इसलिये तीनों चौमासीपर्व, या प र्युषणापर्व, वा आसो, चैत्रकी ओलियोंका अट्ठाईपर्व आने से, भुवनप ति- व्यंतर - ज्योतिषी और वैमानिक इंद्रादि असंख्य देव देवी, अपने समुदाय सहित देवलोक संबंधी अनंत सुखको छोडकर, आठवा नंदीश्वरद्वीपमें जाकर वहां शाश्वत चैत्योंमें श्रीजिनेश्वर भगवान् के शाश्वत जिनबिंबोकी जल- चंदन - पुष्पादिसे द्रव्यपूजा व स्तवन- नाटक वाजित्रादिसे भावपूजा करते हुए महोत्सव करके अपनी आत्माको निर्मल करते हैं । यह अधिकार श्रीजिवाभिगमसूत्र और उनकी टीकावगैरह बहुत शास्त्रों में खुलासा लिखा है. इसी प्रकार पर्युषणादि पर्व आराधन करनेकेलिये जैनीमात्र सर्वश्रावकों को भी विशेषरूपसे धर्मकार्य करने योग्य हैं, इसकाभी विशेष खुलासा ' पर्युषणा अठ्ठाई व्याख्यान' में और कल्पसूत्रकी सबीटीकाओंमें सर्वत्र प्रकटही है, इसलिये यहां पर विशेष लिखनेकी कोई आवश्यकता नहीं है । ३९ - पर्युषणाके विवाद संबंधी सत्यकी परीक्षा करो. जिनाज्ञानुसार सत्यग्रहण करनेवाले आत्महितैषी सज्जनौकों निवेदन किया जाता है, कि आगम नियुक्ति-भाष्य चूर्णि वृति-प्र प्रकरणादि प्राचीन और आजकालके पर्युषणा संबंधी सर्व शास्त्रोंके पाठका, व सभी गच्छोंके पूर्वाचायोंके वचनोंका इस ग्रंथ में मैने संग्रह किया है । और इस भूमिका में भी वर्तमानिक सभी शंकाओं का नंबर वार अनुक्रमसे समाधानभी खुलासापूर्वक करके बतलाया है. और इसग्रंथमैभी अधिकमहीने के ३० दिनोंको गितती में लेनेका निषेध करनेवाले प्रत्येक लेखकोंके सबी लेखोंको पूरेपूरे लिखकर, पीछे उन सब लेखोंकी पंक्ति पंक्तिकी अच्छी तरहसे समीक्षा करके [ इसग्रंथमें ] खुलासापूर्वक बतलाया है, मगर पर्युषणा संबंधी For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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