SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [२२] ऐसे दो अर्थ वर्तमानमें सर्व गच्छवाले ग्रहण करते हैं । इसलिये आ षाढ चौमासीसे ठहरना सो वर्षास्थितिरूप अज्ञात पर्युषणा और मासवृद्धिके सद्भावमें २० दिने या उसके अभावमें ५० दिन ज्ञात (प्रकट) पर्युषणा करना सो वार्षिक कार्यरूप प्रसिद्ध पर्युषणा करनेका समझना चाहिये । जब जैनपंचांगके अभावसे २० दिनक्री पर्यु. षणा बंधहुई, तबसे लौकिक हरेक मास बढ़े तो भी ५०दिने वार्षिक कार्यरूप पर्युषणा करनेकी सर्वगच्छोंके पूर्वाचार्योंकी मर्यादा है. २१-महीना बढे तब वीश दिनकी पर्युषणा वर्षास्थिति रूप हैं; या वार्षिकपर्वरूप हैं ? भो देवानुप्रिय ! जैसे चंद्रवर्ष में ५० दिनकी शात पर्युषणा वा. र्षिक कार्यरूप हैं, तैसेही--अभिवर्द्धित वर्षमें २० दिनकी ज्ञात पर्युषणाभी वार्षिक कार्यरूप है । जिसपरभी श्रावणमें वीश दिनकी ज्ञात पर्युषणा सिर्फ वर्षास्थितिरूपमानोगे,तो भाद्रपद भी५०दिनकी ज्ञात पर्युषणाभी वर्षा स्थितिरूप ठहर जावेंगे और वार्षिककार्य करने सर्वथा उडजावेंगे. और २० दिने वार्षिककार्य नहीं करने, मगर ५० दिने करने ऐसाभी कोई शास्त्र प्रमाण नहींहै, और २० दिने ज्ञात पर्युषणा किये बाद पीछे एक महीनेसे वार्षिककार्य करने ऐसाभी कोई शास्त्र प्रमाण नहींहै । इसलिये जैसे-५० दिने भाद्रपदमें वार्षिक कार्य होतेहैं, वैसेही-२० दिने श्रावण भी वार्षिक कार्य होतेथे । और वर्तमानमेश्रावण या भाद्रपदबढे;तोभी दूसरेश्रावणमे या प्रथम भाद्रपद ५०दिने वार्षिक कार्यरूप पर्युषणापर्व करनासो शास्त्राज्ञाहै. २२-वार्षिक कार्य१२महीने होवें;या १३ महीनेभी होवें? देखो पहिलेभी जैसे-२०दिने श्रावण में वार्षिककार्यकरतेथे तबभी आवतेवर्ष भाद्रपदतक १३महीने होतेथे,तसेही अभी वर्तमानमेभी ५० दिने दूसरे श्रावण में या प्रथम भाद्रपदमें वार्षिक कार्य होनेले आवते वर्ष१३महीने होतेहैं.इसमें कोई दोषनहीं है, देखिये दो पौष,दो आषाढ, अथवा दो आसोज होनेसेभी १३ महीने प्रत्यक्षमें होते हैं; इसलिये महीना बढे तब तो पहिले या पीछे १३ महीनों के २६ पाक्षिक प्रतिक्रमण सर्व गच्छवालोंकोही होतेहैं । और जैनमें या लौकिकमें १२ महीनोंके या १३ महीनौके दोनोंवर्षमाने हैं, इसलिये १२महीनेभी वा. र्षिक कार्यहोवें. और१३महीनेभी वार्षिककार्यहोवै,यह कोई नवीन बात नहीं है। किंतु अनादि मर्यादाका प्रवाह ऐसाही है.जिसपरभी १३ For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy