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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir । २९८ । लिइ जाती है तो पिछले ७० दिनकी जगह १०० दिन हो जायगें, उधर दोष आयगा, संवत्सरीके पीछे ७० दिन शेष रखना-यह बात समवायाङ्गसूत्र में लिखी है-उसका पाठ-वासाणं सवीसयराए मासे वइक ते सत्तरिराइंदिएहिं सेसै हिं, इसलिये वही प्रमाण वाक्य रहेगा कि-अधिकमास कालपुरुषकी चोटी होनेसें गिनतीमें नहीं लेना, अधिक महिनेकों गिनतीमें लेनेसें तीसरा यह भी दोष आयगा कि-चौईस तीर्थङ्करों के कल्याणिक जो जिस जिस महिनेकी तिथिमें आते हैं गिनतीमें वे भी बढ़ जायगें, फिर क्या । तीर्थङ्करोंके कल्याणिक १२० से भी ज्यादे गिनना होगा ? कभी नही, इस हेतुसे भी अधिकमास नही गिना जाता अधिक महिनेके कारण कभी दो भादवे हो तो दूसरे भादवेमें पर्युषणा करना चाहिये जैसें दो आषाढमहिने होते हैं तब भी दूप्तरे आषाढ़में चातुर्मासिककृत्य किये जाते हैं वैसे पर्युषणा भी दूसरे भादधेमे करना न्याययुक्त है।] ___अब न्यायरत्न जीके उपरका लेखकी समीक्षा करके पाठकवर्गको दिखाता हु जिसमें प्रथमतो ( दी श्रावण हो तो भी भादवें मेंही पर्युषणापर्व करना चाहिये) यह लिखना न्यायरत्नजीका शास्त्रों में विरुद्ध है क्योंकि खास न्यायरत्नजीकेही परमपूज्य श्रीतपगच्छके पूर्वाचार्योंने दो श्रावण होने में दूसरे श्रावणमें पर्युषणापर्व करनेका कहा है जिसका अधिकार उपरमें अनेक जगह और खास करके चारों महाशयोंके नामकी समीक्षामें अच्छी तरह से छपगया है इसलिये दो श्रावण होते भी भाद्रपदमें अपने पूर्वजों के विरुद्धार्थ में पर्यु. घणापर्व स्थापन करना न्यायरत्नजीको उचित नही है। For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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