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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ २९ ] और दूसरा यह है कि श्रीतीर्थङ्कर गणधर पूर्वधरादि महान् उत्तम पुरुषोंने सूत्र, चूर्णि, भाष्य, वृत्ति, नियुक्ति प्रकरणादि अनेक शास्त्रों में मासवृद्धिके अभावसे भाद्रपदमें पचास दिने पर्युषणा करनी कही है परन्तु एकावन ५१ में दिने श्रीजिनाज्ञाके आराधक पुरुषोंकों पर्युषणा करना नही कल्पे और एकावन दिने पर्युषणा करने वालोंकों श्री जिनाज्ञाके लोपी कहे है सो प्रसिद्ध है तथापि न्यायरत्नजी इतने विद्वान् हो करके भी श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंके वधनको प्रमाण न करते हुए अनेक सूत्र, घूर्यादि शास्त्रों के पाठोंको उत्थापते हुए मासवृद्धि दो श्रावण होते भी ८० दिने भाद्रपदमै पर्युषणापर्व करनेका लिखते कुछ भी उत्सूत्र भाषणका भय नही करते हैं यह वड़ाही अफसोस है;___ और दो श्रावण होते भी भाद्रपदमें पर्युषणा करनेसे प्रत्यक्ष ८० दिन होते हैं तथा अधिकमास भी शास्त्रानुसार और न्याययुक्ति सहित अवश्य निश्चय करके गिनतीमें सर्वथा सिद्ध है सो उपरमें अनेक जगह छपगया है इसलिये अधिक मासकी गिनती निषेध करना भी उत्सत्र भाषणरूप अन्याय कारक है तथापि न्यायरत्नजीने उत्सत्र भाषणका विचार न करते अधिक मासको गिनतीमें निषेध करने के लिये जो जो विकल्प करके शास्त्रोंके विरुद्धार्थ में भोले जीवोंकी श्रद्धाभङ्ग होनेके लिये लिखा है उसीकी समीक्षा करता हु जिसमें प्रथमतो दो श्रावण होनेसे भाद्रपद तक ८० दिन होते हैं जिसका अपनी कल्पमासे ५० दिन बनानेके लिये न्यायरत्नजी लिखते है कि[ कल्पसूत्रकी टीकामें पाठ है कि अधिकमास काल. For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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