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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ४८ ] मासकों प्रमाण करके गिनती में मंजूर करते हैं जिन्होंकों आज्ञा भङ्गका मिथ्या दूषण लगाके उलटा निषेध करते हैं फिर आप आज्ञाके आराधक बनते हैं यह कितनी बड़ी आश्चर्य्यकी बात हैं । श्रीअनन्त तीर्थङ्करादिकोंने अधिकमासको गिनती में प्रमाण किया हैं इसलिये जिन्नाज्ञाके आराधक आत्मार्थी पुरुष कदापि निषेध नही कर सकते हैं तथापि वर्तमान में जो अधिक मामको गिनती में निषेध करते हैं जिन्होंकों श्रीतीर्थङ्कर गणधर पूर्वधरादि पूर्वा बायकी और अपने पूर्वजोंकी आज्ञाभङ्गके सिवाय और क्या लाभ होगा सो निर्पक्षाती आत्मार्थी पाठकवर्ग स्वयं विवार लेवेंगें । प्रश्नः --- अजी तुम तो श्रीअनन्ततीर्थङ्कर गणधर पूर्वधरादि पूर्वाचाय्यजी की शाक्षिसे अधिकमासको दिनों में पक्षोंमें, मासोंमें, वर्षों में गिनती करनेका प्रत्यक्षप्रमाण उपरोक्त शास्त्रों के प्रमाणसें दिखाया हैं परन्तु वर्तमानिक श्रीतपगच्छादिवाले अधिकमास तो एककाल चूलारूप हैं इसलिये गिनती में नही लेना एता कहते हैं सो कैसें । उत्तरः- भो देवानुंप्रिये वर्तमानिक श्रीतपगच्छादिवाले अधिकमासको कालचूला कहके गिनती में निषेध करते हैं को कदापि नही हो सकता है क्योंकि अधिकमासको कालचूला किस कारण से कही हैं जिसका अभिप्राय और कालचूला कहने से भी विशेष करके गिनती करने योग्य हैं तथा aroorat ओपमा बहुत उत्तम श्रेष्ठ शास्त्रकारोंने दिवी हैं सो हमतो क्या कुल जैन श्वेतांबर जिनाज्ञाके आराधन करनेवाले आत्मार्थी सबी पुरुषोकों मान्य करने योग्य हैं For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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