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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ४७ ] आत्मार्थी जिनाज्ञाके आराधक पुरषोंको प्रमाण करने योग्य हैं । इस संसारको अनन्ते काल हो गये हैं जिसमें अनन्त चौवीशी ब्यतित हो गइ चन्द्र सूर्य्यादिके विमान भी अनन्त कालसे सरू हैं इस लिये जैनज्योतिष भी अनन्ते कालसें प्रचलित हैं जिसमें अधिक मास भी अनन्त कालसें चला आता हैं—मास वृद्धि के अभाव से बारह मास के संवत्सरका नाम चन्द्र संवत्सर हैं और मारुवृद्धि होनेसें तेरहमासकी गिनतीके कारणसें संवत्सरका नाम अभिवर्द्धित संवत्सर हैं तीन चन्द्रसंवत्सर और दोय अभिवति संवत्सर इन पांच संवत्सरोंसे एकयुग होता हैं एकयुगमें पांच संवत्सरोंके बासठ (६२) मातोंकी बासठ (६२) पूर्णिमासी और बासठ (६२) अमावस्या के एकसो चौवोश (१२४) पर्वणि अर्थात् पाक्षिक अनन्त तीर्थङ्करादिकोंनें कही हैं जिससे अनन्तकाल हुए अधिकerent froती दिन, पक्ष, मात, वर्षादिमें चली आती हैं किसीने भी अधिकमासको गिनती का एकदिन मात्र भी निषेध नहीं किया हैं तथपि बड़े अफसोस की वात हैं कि, वर्तमानिक श्रीतपगच्छादिवाले अधिकमास की गिनती वड़े जोरके साथ वारंवार निषेध करके एकमासके ३० दिनोंकी गिनती एकदम छोड़ देते हैं और श्रीअनन्त तीर्थङ्कर महाराजोंकी श्रीगणधर महाराजोंकी श्रीपूर्वधर पूर्वाचाजी की तथा इनलोगोंके खास पूज्य श्रीतपगच्छके ही प्रभाविकाचा जी की आज्ञा भङ्गका भय नही करते हैं और श्री अनन्त तीर्थङ्कर गणधर पूर्वधरादि पूर्वाचाय्यजी की आज्ञा मुजब वर्तमान में श्री खरतरगच्छादिवाले अधिक For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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