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[ ४२ ] ६२ चन्द मासके १८३० दिन एक युगकी पूर्ति करनेवाले दिखाये हैं तथापि वर्तमानिक श्रीतपगच्छादि वाले मेरे धर्मबन्धु अधिक मासकी गिनती निषेध करते हैं जिनोंको विचार करना चाहिये ॥ ____और भी श्रीतपगच्छके पूर्वाचार्यजी श्रीक्षेमकीर्तिसूरिजी कृत श्रीवहत्कल्पवृत्ति खंभायतके भंडारवालीके दूसरे उद्देशे दूसरे खण्डमें-नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव में ६ प्रकारके मासोंकी व्याख्या किवी हैं जिसमें में इस जगह एक काल मासकी व्याख्या वर्तमानिक श्रीतपगच्छवालोंको अपने पूर्वजका वचन याद करानेके वास्ते और भव्य जीवोंको निःसन्देह होनेके लिये पृष्ठ १९८ वें का पाठ दिखाते हैं तथाच तत्पाठ
कालमासः श्रावणादिः यद्वा कालमासो नक्षत्रादिकः पञ्चविधस्तद्यथा नक्षत्रमासः चंद्रमासः ऋतुमास आदित्यमास अभिवद्धि तमास अमीषामेव परिमाणमाह गाथाः नरकत्तो खलु मासो, सत्तावीसं हवंति अहोरत्ता ॥ भागाय एकवीसं, सत्तहि कएण बेएणं ॥१॥ अउण तीस चंदो, विसद्वि भागाय हुंति बत्ती ता॥ कम्मो तीसह दिवसो, वीसा अध्धंच आइचो ॥२॥ अभिवदिढ इकतीसा चउवीसंभाग सयंवड़तिगहीणं भावे मूलाइझ उपगयं पुण कम्म मासेणं ॥३॥ नक्षत्रेषु भवो नक्षत्रः स खलु मासः सप्तविंशत्यहोरात्राणि सप्तषष्ठी कृतेन छेदेन छिन्नस्याउहोरात्रस्यैकविंशति सप्तषष्टीभागाः तथाहि चंद्रस्य भरण्याश्लेषा स्वाति ज्येष्टा शतभिषा नामानि षट्नक्षत्राणि पञ्चदशमुहूर्तभोग्यानि तिस्र उत्तराः पुनर्वसु रोहिणी विशाखा चेति षट् पञ्चचत्वारिशन्मुहूत भोग्यानि शेषाणि तु
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