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[ २ ] सुन्दरजी कृत श्रीसमाचारी शतकमें २१ और श्रीपाश्चन्द्र गच्छके श्रीब्रह्मर्षिजी कृत श्रीदशाश्रुतम्कन्ध सूत्रकी वृत्तिमें २२ इत्यादि अनेक शास्त्रों में अधिकमासको गिनतीमें प्रमाण किया हैं इसलिये जिनाज्ञाके आराधक आत्मार्थी पुरुष अधिकमासकी गिनती कदापि निषेध नहीं कर सकते हैं इस जगह भव्य जीवोंको निःसन्देह होनेके वास्ते थोड़ेसे अधिकमासकी गिनतीके विषयवाले पाठ लिख दिखाता हुँ
श्रीतपगच्छके पूर्वज कहलाते श्रीनेमिचन्द्र सूरिजी महा. राज कृत श्रीप्रवचनसारोद्धार मूलसूत्र गुजराती भाषा सहित मुंबईवाले प्रावक भीमसिंह माणककी तरफसें श्रीप्रकरण रत्नाकरके तीसरे भागमें छपके प्रसिद्ध हुवा हैं जिसके पृष्ठ ३६४ में ३६५ तक नीचे मुजब भाषा सहित पाठ जानो-.
__ अवतरणः-मासाण पञ्चभेयत्ति एटले मासना पांचभेदोन एकसोने एकतालीसमुंद्वार कहे छे। मूलः-मासाय पंचसुत्ते, नस्कत्ते चंदीओय रिउमासो ॥ आइ चोविये अवरो, भिवढिओ तहय पंवमओ ॥४॥ ___अर्थः-सूत्र जे श्रीअरिहंत परमात्मानं प्रवचन तेने विषे मास पांच कह्या छ। तेमा प्रथमजे नक्षत्रनी गणनाये थाय तेनी रीतकहे छेः-चंद्रमाचारके० संचरतो जेटले काले अभिजितादिकथी विचरतो उतराषाढ़ा नक्षत्र सुधी जाय तेने प्रथम नक्षत्र मास कहिये। बीजो चंदिओयके चंद्रथ कीथाय ते अंधारा पड़वाथकी आरंभीने अजवाली पूर्णिमा सुधी चंद्रमास केहेवाये । त्रीजोरिओके० ऋतु ते लोक रूढ़िये साठ अहोरात्रीये ऋतु कहिये। तेनो अईमास एटले त्रीस अहो.
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